ग़ज़ल
बिन तेरे मौसम में कोई दिलकशी होती नहीं।
मुसकुराते हैँ मगर दिल मेँ खुशी होती नहीं।
सहने दिल की ज़ुलमतों में रौशनी होती नहीं,
जब तलक आँखोँ मेँ सूरत आपकी होती नहीं।
हमने ये माना मुकद्दर मेँ नहीं उनका हुसूल,
कया करें हमसे तमन्ना ग़ैर की होती नहीं।
ये भी सच है ज़िंदगी जैसा नहीँ कुछ भी बचा,
हमसे लेकिन चाह के भी खुदकुशी होती नहीं।
ये भी कया मक़्सद बिना मँज़िल बिना चलते चलो,
जीने वालो जीते जाना ज़िँदगी होती नहीं।
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